Saturday, April 26, 2025

बेड़ा पार

आम आदमी का मारा जाना 
एक आम बात है 
हर दिन, हर रात 
कोई ना कोई 
कहीं ना कहीं 
मारा जाता है 

रोंद दिया जाता है 
कभी सड़क पर 
काट दिया जाता है
कभी नुक्कड़ पर   
भ्रष्ट व्यवस्था उसे 
कभी सुला देती है 
रेल की पटरी पर 
अस्पताल की देहरी पर 
कभी करती है, इतना मजबूर  
की वो लटक जाता है 
अपने ही खेत में किसी पेड़ पर 
आम आदमी का मारा जाना 
एक आम बात है 

जरूरी नही की हर बार 
धमाका हो 
हर  कत्ल बंदूक की  
गोली से हो 
जगह ये हो, या वो हो 
आवाज हो, या ना हो 

और चीख  सुनाई भी दे तो क्या? 
हम तो चुप है, सदियों से   
अब तो आदत सी हो गयी है 
इस चुप्पी की  
आम आदमी का मारा जाना 
एक आम बात है 

पर क्या अब भी? 
अब भी मै चुप बैठू? 
जब भून दिया मेरे पडोसीको  
फिरभी मै घोसले में इंतजार करू 
कब मौत मेरा दरवाजा खटखटाएगी? 
हां भाई हां मुझे पता है
आम आदमी का मारा जाना 
एक आम बात है
पर फिर भी.. 

मेरा पडोसी, एक नेक आदमी था 
उसके हाथों की लकीरों ने 
उसके ख्वाबों से रिश्ता 
कब का तोड़ दिया था 
बस एक छोटी सी तमन्ना थी 
उसकी, जन्नत के सैर की   
उसे कुचल दिया गया  
उसी जन्नत के बगीचे में  
सरेआम 
 
क्या अब भी? 
अब भी मै चुप बैठू? 
दोस्त को पूछा, तो बोला 
आर्मी वाले कुछ ना कुछ तो 
कर ही देंगे 
तू क्यों बौखला गया है?
बहुत चुभ रहा है तो जा 
कॅण्डल मार्च में शरीक हो जा

और सुन, 
मातम वो मनाते है
जो जिंदा है
हम को तो गुजरे हुए 
जमाना हो गया 
अब तो आदत सी हो गयी है  
मुर्दा बनके सड़ने की 

और तू ये कहीं 
भुला तो नहीं?
आम आदमी का मारा जाना 
एक आम बात है 
हर दिन, हर रात 
कोई ना कोई 
कहीं ना कहीं 
मारा जाता है 

छोड ये सब फिजूल की बाते यार 
टीव्ही पे आयपीएल चालू है लगातार 
ये बता, कर पाएगा क्या केकेआर
इस बार, बेड़ा पार?  
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©️ अभिजीत अत्रे. पुणे
२६ अप्रैल २०२५
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